UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 1 A Girl with a Basket


UP Board Solutions for Class 12 English Prose 

Chapter -1 A Girl with a Basket



A Girl with a Basket

सम्पूर्ण पाठ का हिन्दी रूपान्तरण 

LESSON at a Glance


हिमालय की ओर बढ़ते हुए मैं दिल्ली को छोड़ चुका था। मुझे बरेली तक रेलगाड़ी से जाना था, और फिर कार से रानीखेत तक जो अंग्रेज सेना की पर्वतीय क्षेत्र थी और जो बर्फ से ढके 120 मील तक फैले हिमालय के सामने एक 6,000 फुट ऊँची पर्वतश्रेणी पर स्थित है। रेलगाड़ी धीमी गति से चल रही थी, और रास्ते में पड़ने वाले सभी स्टेशनों पर रुक रही थी। प्रत्येक स्टेशन पर मैं अपने डिब्बे (कम्पार्टमेंट) के दरवाजे को खोल देता था और प्लेटफार्म पर घूमता था।
प्लेटफार्म लोगों से ठसाठस भरे होते थे जिनमें सिख, मुसलमान, हिन्दू, सैनिक, व्यापारी, पुजारी, कुली, भिखारी, फेरीवाले होते थे। प्राय: प्रत्येक व्यक्ति नंगे पैर होता था तथा ढीले सफेद कपड़े पहने होता था। मैं कम-से-कम तीन व्यक्तियों से पूछता तब मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिलता जो अंग्रेजी बोल सकता था। हम संसार के मामलों और उस प्रत्येक महत्त्वपूर्ण विषय पर बात करते जो उस दिन के समाचारों में होता था। इस प्रकार में जनता के विचारों की सरकारी दृष्टिकोण और दी गई सूचनाओं से तुलना करके राष्ट्र की भावनाओं को जानने का प्रयत्न करता था।
यह मार्ग भारत के सर्वाधिक विकसित कृषि क्षेत्रों में से एक था। यह ऊपरी गंगा नदी का मैदान था, जो समुद्र तल से एक हजार फुट ऊँचा होने पर भी काफी गरम था। गंगा का रंग मटमैला था, वह बाढ़ के पानी से उफन रही थी और इसके बाढ़ के पानी में हजारों एकड़ चावल के खेत डूबे हुए थे। उत्तरी दिशा में जंगलों का विस्तार था- अविच्छिन्न रूप से लंबी-लंबी घास फैली थी जिसकी ऊँचाई आदमी के सिर से भी अधिक थी, जिसके बीच-बीच में बड़े-बड़े पेड़ों के झुरमुट थे- जो बाघों, हाथियों, अजगरों व नागों के शरणास्थली थे। बाकी स्थलों पर सपाट मैदान ही थे जो दूर क्षैतिज तक विस्तृत दिखाई पड़ते थे लेकिन बीच-बीच में यहाँ-वहाँ बरगदों के पेड़, पाकड़ पेड़ों की पंक्तियाँ एल्म पेड़ों की तरह दिखाई देती थी जिनके तने घुमावदार मोटाई लिए हुए थे। दक्षिण-पश्चिम की ओर से गर्म और तर हवा बह रही थी। स्टेशनों पर खाने की खोज में बंदर पेड़ों से उछलकर आ जाते थे- उनमें से कुछ बन्दरियाँ भी होती थी, जिनके पेट से बच्चे चिपके होते थे। जिन गाँवों से होकर हम गुजरे थे उनकी दीवारें गोबर और कच्ची मिट्टी से बनी हुई थीं। उनकी नोकदार छतों पर छप्पर थे- ढलुवाँ बल्लियों पर फैले हुए बाँस जिन पर घास के बंडल बँधे थे। छप्परों पर फैली हुई कद्दू की बेलों पर उस दिन फूल खिले हुए थे और वे मटमैली मोटी दीवारों पर लटकी हुई पीले रंग की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ जैसी लग रही थी।
लोगों से बात करने का मेरा यह सिलसिला एक स्टेशन पर टूट गया। जैसे ही मैं डिब्बे से नीचे उतरा, बच्चों की एक टोली मेरे चारों ओर एकत्रित हो गई। वे टोकरियाँ बेच रहे थे- हाथ से बुनी, सरकडे की टोकरियाँ जिन पर सादी डिजाइनें बनी हुई थीं। वे टोकरियों को ऊँचा उठाए हुए थे और जोर से ऐसे शब्द बोल रहे थे जिन्हें मैं नहीं समझ पा रहा था, किंतु उनके शब्द उनकी इच्छा स्पष्ट रूप से प्रकट कर रहे थे।
ये शरणार्थी बच्चे थे। जब भारत और पाकिस्तान के विभाजन का निर्णय हुआ तो लाखों लोगों ने अपने मूल स्थानों को छोड़ दिया। नब्बे लाख लोग धार्मिक उमाद के डर से पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए। वे रवाना होते समय पूरी तरह से निर्धन थे जब उन्होंने अपनी लंबी कठिन यात्रा आरम्भ की तो वे और भी गरीब हो गए क्योंकि जो कुछ वे ला सकते थे वह केवल थोड़ा-सा भोजन और कुछ सामान था। शीघ्र ही उनकी भोजन सामग्री भी समाप्त हो गई। यात्रा आरम्भ करने के कुछ दिन पश्चात् ही भुखमरी के कारण वे लोग सड़कों के किनारे ही गिरकर मरने लगे।
टोकरियाँ बेचने वाले बच्चे इन्हीं शरणार्थियों के पुत्र-पुत्रियाँ थे। वे या उनके माता-पिता या रिश्तेदार नगरों में एक हो गए थे, छोटी खुली दुकाने लगाकर और साधारण वस्तुओं को बनाकर उन बाजारों में,जहाँ पहले से ही अत्यधिक भीड़ थी,जीविका कमाने का प्रयत्न कर रहे थे। वे कपड़े तथा घास से बनी झोपड़ियों, जिनकी गलियों में कतारें लगी हुई थी, में रहते थे। ये शरणार्थी, जो छोटे किसान थे, जीवनभर थोड़े में जीवन-निर्वाह करने के अभ्यस्त थे क्योंकि उनकी वार्षिक औसत आमदनी वर्ष में सौ डॉलर से अधिक नहीं होती थी। साधारण अकुशल मजदूर प्रतिदिन तीन सेट या सप्ताह में दो डॉलर से कम कमाता है। दिन में एक बार भोजन मिलता है-एक प्याज, एक रोटी, दूध के साथ एक कटोरी दाल, शायद थोड़ा-सा बकरी के दूध का पनीर। न चाय, न कॉफी, न चिकनाई (घी आदि), न मिठाई, न गोश्त। एक वर्ष में सौ डॉलर से सप्ताह में दो डॉलर भी नहीं हाते, फिर भी इतना थोड़ा-सा धन उन लोगों को टोकरियाँ बेचकर नहीं कमाया जा सकता था जो स्वयं इतने गरीब है कि टोकरियाँ नहीं खरीद सकते। निःसन्देह यही कारण है कि ये छोटे बच्चे मेरे ऊपर टिड्डियों की भाँति टूट पड़े। उनकी नज़र में एक अमेरिकी होने के कारण निःसन्देह में सर्वाधिक आशाजनक खरीदार था। 
मैंने कुछ आने में एक छोटी-सी टोकरी खरीदी, थोड़े से अधिक पैसों में फलों की एक दूसरी टोकरी, एक रूपए में रद्दी कागज डालने की एक सुन्दर टोकरी, एक रूपए में सिलाई के सामान की टोकरी, एक या दो आना प्रत्येक में कुछ पंखे। मेरे हाथ भर गए थे और मैंने पचास सेन्ट भी खर्च नीं किए थे। बच्चे अपने माल की जोर से आवाज लगाते हुए घूम रहे थे। मैं चारों ओर से घिरा, आगे बढ़ने में असमर्थ एक कैदी बन गया था। सर्वाधिक परिश्रमी, चुस्त विक्रेता नौ साल की एक सुन्दर लड़की थी जो मेरे सामने खड़ी थी। उसके पास मूठ वाली एक सुन्दर टोकरी थी और उसके लिए वह डेढ़ रुपया या लगभग तीस सेर चाहती थी। वह बहुत जोर देकर अपने बात कहने रही थी। उसकी आँखों में आँसू थे। वह बहुत आग्रह कर रही थी और उसके स्वर में ऐसे करुणा थी जो किसी भी हृदय को झकझोर दे।
मेरे हाथ भरे हुए थे। एक और टोकरी के लिए, आवश्यकता की तो बात ही क्या, मेरे पास जगह नहीं थी। अपने बाएँ हाथ पर टोकरियों और पंखों को सँभालकर, मैंने अपने सीधे हाथ वाली कोट की जेब में हाथ डालकर थोड़ी-सी रेजगारी निकाली-शायद कुल मिलाकर पन्द्रह सेन्ट थे- जो मैंने उस टोकरी में रख दी जिसे वह लड़की मेरे सामने कातर ढंग से पकड़े हुए थी। मैंने यह समझाने का प्रयल किया कि मैं टोकरी नहीं खरीद सकता हूँ, परन्तु उसके बदले धन का उपहार दे रहा हूँ। मैंने तुरन्त अनुभव किया कि मैंने कोई अपराध कर दिया है। इस नौ वर्ष की बच्ची ने, जो फटे कपड़े पहने थी और भुखमरी के कगार पर थी, अपनी ठोढ़ी ऊपर उठाई, टोकरी में हाथ डाला और एक स्वाभिमानी स्त्री जैसे सम्मान और गौरव के साथ धन मुझे लौटा दिया। केवल एक ही काम था जो मैं कर सकता था। मैंने टोकरी खरीद ली। उसने अपनी आँखें पोंछी, मुस्कराई और प्लेटफार्म से तेजी से भागकर किसी घास की झोपड़ी की ओर बढ़ी जहाँ उस रात के लिए उसके पास कम-से-कम तीन सेन्र हो गए होंगे।
मैंने यह कहानी प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू को सुनाई। मैने उन्हें बताया कि यह भी एक कारण है जिसकी वजह से मैं भारत से स्नेह करने लगा हूँ।

जो लोग मैने भारत में देखे- गाँव में तथा ऊँचे पदों पर आसीन भी- उनमें स्वाभिमान तथा अच्छे व्यवहार और सुयोग्य नागरिकता की भावना भरपूर है। उनमें स्वतंत्रता के लिए तीन लालसा भी है। इस सुन्दर बच्ची ने- जो गन्दगी और गरीबी में पली थी, जिसे भाषा और व्यवहार की किसी स्कूल में कोई शिक्षा नहीं मिली थी-मुझे भारत की गहन भावना-प्रधान आत्मा की एक झलक दिखा दी थी।

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